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लावारिसों की लाचारी

मेरी कहानियाँ
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आज सुबह की बात है, में ऑफिस जा रहा था कालिंदी कुञ्ज में एक स्विफ्ट ने मुझे बहुत तेज़ी से ओवर टेक करके आगे निकला शायद उसी काफी जल्दी थी या फिर उसे जवानी का जोश भी कह सकते है । में उसके पीछे- पीछे ही था अपोलो से थोड़े से आगे उस गाडी वाले ने एक कुत्ते को अपनी गाडी से कुचल दिया, शायद वो कुत्ता रोड के एक तरफ से दूसरी तरफ जा रहा था । उस कुत्ते की घटना स्थल पे ही मृत्य हो गई। वो गाडी वाला उतरा, (देखने से बहुत ही रईस लग रहा था ), गाडी का दरवाज़ा खोल के वो नीचे उतरा, गाडी के उस कौने पे गया जिस तरफ से उसकी गाडी और कुत्ते की भिडंत हुई , हाथ लगा के उसने गाडी के उस हिस्से को देखा शायद वो यह देखना चाहता था की कहीं गाडी पे कोई डेंट या फिर स्क्रैच तो नही आया है । जब वो संतुष्ट हुआ की उसकी गाडी पे कोई डेंट या फिर स्क्रैच नहीं है तो वापस उठा, गाडी के अन्दर बैठा, गाडी स्टार्ट किया और चलता बना । सबसे बड़ी बेशर्मी की बात यह थी की उसे इस बात की बिलकुल फिकर या एहसास नहीं था की उसके हाथो से एक जीव की हत्या हुई है । वो चला गया उस कुत्ते की लाश वही सड़क पे पड़ी रह गई, उसके खून के धब्बे सड़क पे फैले हुए थे । कुछ देर लोग खड़े रहे,  फिर एक – एक करके चले गए।
मेरा कहना यह है की अगर यह हादसा एक इंसान के साथ होता और उस हादसे में एक इंसान की मौत होती तो क्या वो गाडी वाला ऐसे चला जाता ? क्या वहां पे खड़े लोग उसे जाने देते?  क्या उनके लिए यह हादसा एक मामूली हादसा होता?  क्या हमारे कानून में सिर्फ इंसानी ज़िन्दगी की कीमत है;  और किसी की ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं है ।
एम् सी डी वालों का काम कुत्तो का पकड़ना, उनकी नसबंदी करना और वापस छोड़ देना होता है क्या, इसके अलावा उनकी और कोई जिम्मेदरी नही है क्या । आज हमारे देश में हजारों एन जी ओ है जो पशु – पक्षियों के संरक्षण पे काम करते है लकिन यह सारे काम नाम कमाने का जरिया बन के रह गया है। जिस किसी को कम समय में नाम और सोसाइटी में प्रतिष्ठा  बनानी होती है वो किसी न किसी एक एन जी ओ से जुड़ जाता है ।
अपने घर के पालतू कुत्तो को हम कितना महत्व देते हैं, उनके लिए अलग चादर , अलग तकिया और यहाँ तक की उनके खाने और रहने का भी अलग इन्तेजाम होता हैं। क्या ये इसलिए उपेक्षा के शिकार हैं की इनका कोई कोई? जरा सोचिये? आइये इनके जीवन के मोल को भी हम समझे, इनका भी जीवन हमारे, आपके जीवन की तरह अनमोल है । चोट लगने पे उन्हें भी उतना ही दर्द होता है जितना की हमको और आपको । ईश्वर हर जीव जंतु में है, उनका आदर करना सीखें। सिर्फ गाय को रोटी खिलाने से कुछ नहीं होता जब तक जीवमात्र पर दया करनी नहीं आएगी।

आज सुबह की बात है, में ऑफिस जा रहा था कालिंदी कुञ्ज में एक स्विफ्ट ने मुझे बहुत तेज़ी से ओवर टेक करके आगे निकला शायद उसी काफी जल्दी थी या फिर उसे जवानी का जोश भी कह सकते है । में उसके पीछे- पीछे ही था अपोलो से थोड़े से आगे उस गाडी वाले ने एक कुत्ते को अपनी गाडी से कुचल दिया, शायद वो कुत्ता रोड के एक तरफ से दूसरी तरफ जा रहा था । उस कुत्ते की घटना स्थल पे ही मृत्य हो गई। वो गाडी वाला उतरा, (देखने से बहुत ही रईस लग रहा था ), गाडी का दरवाज़ा खोल के वो नीचे उतरा, गाडी के उस कौने पे गया जिस तरफ से उसकी गाडी और कुत्ते की भिडंत हुई , हाथ लगा के उसने गाडी के उस हिस्से को देखा शायद वो यह देखना चाहता था की कहीं गाडी पे कोई डेंट या फिर स्क्रैच तो नही आया है । जब वो संतुष्ट हुआ की उसकी गाडी पे कोई डेंट या फिर स्क्रैच नहीं है तो वापस उठा, गाडी के अन्दर बैठा, गाडी स्टार्ट किया और चलता बना । सबसे बड़ी बेशर्मी की बात यह थी की उसे इस बात की बिलकुल फिकर या एहसास नहीं था की उसके हाथो से एक जीव की हत्या हुई है । वो चला गया उस कुत्ते की लाश वही सड़क पे पड़ी रह गई, उसके खून के धब्बे सड़क पे फैले हुए थे । कुछ देर लोग खड़े रहे,  फिर एक – एक करके चले गए।

मेरा कहना यह है की अगर यह हादसा एक इंसान के साथ होता और उस हादसे में एक इंसान की मौत होती तो क्या वो गाडी वाला ऐसे चला जाता ? क्या वहां पे खड़े लोग उसे जाने देते?  क्या उनके लिए यह हादसा एक मामूली हादसा होता?  क्या हमारे कानून में सिर्फ इंसानी ज़िन्दगी की कीमत है;  और किसी की ज़िन्दगी की कोई कीमत नहीं है ।

एम् सी डी वालों का काम कुत्तो का पकड़ना, उनकी नसबंदी करना और वापस छोड़ देना होता है क्या, इसके अलावा उनकी और कोई जिम्मेदरी नही है क्या । आज हमारे देश में हजारों एन जी ओ है जो पशु – पक्षियों के संरक्षण पे काम करते है लकिन यह सारे काम नाम कमाने का जरिया बन के रह गया है। जिस किसी को कम समय में नाम और सोसाइटी में प्रतिष्ठा  बनानी होती है वो किसी न किसी एक एन जी ओ से जुड़ जाता है ।

अपने घर के पालतू कुत्तो को हम कितना महत्व देते हैं, उनके लिए अलग चादर , अलग तकिया और यहाँ तक की उनके खाने और रहने का भी अलग इन्तेजाम होता हैं। क्या ये इसलिए उपेक्षा के शिकार हैं की इनका कोई कोई? जरा सोचिये? आइये इनके जीवन के मोल को भी हम समझे, इनका भी जीवन हमारे, आपके जीवन की तरह अनमोल है । चोट लगने पे उन्हें भी उतना ही दर्द होता है जितना की हमको और आपको । ईश्वर हर जीव जंतु में है, उनका आदर करना सीखें। सिर्फ गाय को रोटी खिलाने से कुछ नहीं होता जब तक जीवमात्र पर दया करनी नहीं आएगी।

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